Thursday, February 14, 2019

Desh k Jawaan ki aawaj

देनी पड़ती बिना युद्ध क हमें शाहदत
क्या यही हमारी आज़ादी है
क्या हमारी कुर्बानी से ,
नहीं दुखती तुम्हारी छाती है

अपनी ही सरहद में , अपने ही गांव में ,
अपने आशियाने में हमें मरना पड़ता है ,
हमारे अपने ही लोगो को
अपने देश में डरना पड़ता है.

खोल दो हाथ हमारे ,
अब कोई और हमला न होने देंगे
न सूनी होगी गोद किसी की
न सिन्दूर किसी का खोने देंगे

वरना एक दिन दिल्ली भी ऐसी न हो जाए
जैसे आज पुलवामा की घाटी है ,
बिना लड़े मर जाते हम ,
क्या यही हमारी आज़ादी है
क्या यही हमारी आज़ादी है .....

by Sach

No comments:

Post a Comment